shree Parshwanath ektisa lyrics
श्री पार्श्वनाथ इकतीसा
॥ दोहा ॥
पारस प्रभु के चरण में, निशदिन करूँ प्रणाम ।
मन – वांछित पूरो प्रभु !, श्याम वर्ण सुखधाम । (१)
॥ चौपाई ॥
चरण – शरण में भक्त तुम्हारा, शरणागत हूँ मैं दुखियारा ।
भव सागर से हमें उबारो, अपने यश की बात विचारों ॥ (२)
तुम जन जन के बने सहारे, हम तो सारे जग से हारे ।
हारा तुमको हार चढावे, तो जग में कैसे यश पावे ॥ (३)
जीवन के हर बन्धन खोलो, मत मेरे पापों को तौलो ।
पूजा की कुछ रीत न जानें, आए मन की पीर सुनाने ॥ (४)
तुमने अनगिन पापी तारे, मैं भी आया द्वार तुम्हारे ।
मुझको केवल आस तुम्हारी, अपना लो हे भव भयहारी ॥ (५)
सकल धरा को स्वर्ग बनाया, व्यन्तर को समकित दरसाया ।
लेकर नर अवतार धरा पर, पाप मिटाया ज्ञान जगाकर ॥ (६)
पौष बदि दशमी तिथि पाकर, नभ से उतरी किरण धरा पर ।
धर्मपुरी काशी में जन्मे, शंकर रमे जहाँ कण कण में ॥ (७)
बडभागी वह वामा माता, जिसने जनमा तुम – सा – त्राता ।
अश्वसेन के पुत कहाए, फिर भी जगत – पिता पद पाए ॥ (८)
कमठ तपस्वी अति अभिमानी, प्रभु तुम सकल तत्त्व के ज्ञानी ।
आग जली संग जली तपस्या, धर्म बन गया स्वयं समस्या ॥ (९)
काठ चिराया नाग दिखाया, आँसू से अभिषेक कराया ।
महामंत्र नवकार सुनाकर, स्वर्ग दिलाया पुण्य जगाकर ॥ (१०)
धन्य – धन्य वे प्राणी जलचर, मन्त्र सुनाते जिन्हें जिनेश्वर ।
महामंत्र की महिमा भारी, पारस प्रभु वर्तो जयकारी ॥ (११)
राज महल के राग रंग में, रहकर भी थे नहीं संग में ।
नेमिनाथ की करुणा जानी, जग की समझी पीर पुरानी ॥ (१२)
राग मिटा वैराग जगाया, मुक्तिपंथ पर चरण बढाया ।
भले – बुरे का भाव न रखते, प्रभुवर तो समता में रमते ॥ (१३)
लगे बरसने ओले सिर पर, वर्षा होती रही निरन्तर ।
आँधी ने गिरि – शिखर गिराये, पारस प्रभु को कौन डिगाये ॥ (१४)
सुरनर नरपति मुनिजन देवा, करते प्रभु चरणों की सेवा ।
प्रभु अनन्त प्रभु कथा अनन्ता, कह न सके सुर नरवर सन्ता ॥ (१५)
पद्मावती सेविका माता, जिसकी महिमा त्रिभुवन गाता ।
जिसने प्रभु को सिर पर धारा, धार रहा भूमण्डल सारा ॥ (१६)
माँ की मूरत मंगलकारी, पूरे मनोकामना सारी ।
चरण – कमल में शीष नमाऊँ, अपनी बिगडी बात बनाऊँ ॥ (१७)
फणधर ने फण छत्र बनाया, श्री धरणेन्द्र देव हरषाया ।
हे चिन्तामणि ! चिन्ता चूरो, विघ्न हरो हर इच्छा पूरो ॥ (१८)
शंकर जैसे हर कंकर में, पारस वैसे हर पत्थर में ।
धाम तुन्हारे बने हजारों, पुरुषादानी हमें उबारों ॥ (१९)
शंखेश्वर हो या नागेश्वर, नाकोडा या शिखर – गिरिवर ।
तेरे चमत्कार घर – घर में, महिमा व्यापी नगर – नगर में ॥ (२०)
मुक्त हुए सम्मेत शिखर से, रक्षक जहाँ भोमिया सरसे ।
पहले उनको शीष नमाओ, अपनी यात्रा सफल बनाओ ॥ (२१)
नाकोडा के भैरव देवा, तुम भक्तों को देते मेवा ।
झन – झन – झन झंकार कर रहे, सबकी नैया पार कर रहे ॥ (२२)
नाम तुम्हारा जिसने धारा, उससे सुभट केसरी हारा ।
सुमिरन करे नाम जो तेरा, मिट जाए पापों का फेरा ॥ (२३)
दूर देश क्यों दौडे तपते, बिगडे काम बने जो जपते ।
कलियुग भी सतयुग बन जाए, जो तेरी किरपा हो जाए ॥ (२४)
भक्तों को भगवान बनाते, सेवक को श्रीमान् बनाते ।
लोहे को कंचन कर डाले, ऐसे पारस परम निराले ॥ (२५)
नमस्कार है चमत्कार को, हरो हमारे अंधकार को ।
हम घर मंगल हर घर मंगल, बन जाएँ हम निर्मल – निश्छल ॥ (२६)
सजें होंठ पर सबके खुशियाँ, रहे न जग में कोई दुखिया ।
गाएँ सब जन गीत प्यार का, दर्शन होवे मुक्ति – द्वार का ॥ (२७)
पारस प्रभु चरणन चित लाये, जो पारस इकतीसा गाये ।
उसकी हर मंशा हो पूरी, प्रभु से रहे न उसकी दूरी ॥ (२८)
॥ दोहा ॥
पारस प्रभु के द्वार पर, खडा झुकाकर शीष ।
हरो पीर मन की प्रभु, दो मंगल आशीष ॥ (२९)
जैसा हूँ वैसा प्रभु !, हूँ तेरा ही दास ।
‘चन्द्र’ चरण की शरण में, एक तुम्हारी आस ॥ (३०)
मैं अनाथ पर नाथ तू, रखना मुझ पर हाथ ।
स्वीकारो मुझ पतित को, हे प्रभु पारसनाथ ॥ (३१)
जय श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ ।।
जय श्री नाकोड़ा भैरवनाथ ।।
जय माँ पद्मावती ।।
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